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पृ॒थि॒वी च॑ म॒ऽइन्द्र॑श्च मे॒ऽन्तरि॑क्षं च म॒ऽइन्द्र॑श्च मे॒ द्यौश्च॑ म॒ऽइन्द्र॑श्च मे॒ समा॑श्च म॒ऽइन्द्र॑श्च मे॒ नक्ष॑त्राणि च म॒ऽइन्द्र॑श्च मे॒ दिश॑श्च म॒ऽइन्द्र॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥१८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पृ॒थि॒वी। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। अ॒न्तरि॑क्षम्। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। द्यौः। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। समाः॑। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। नक्ष॑त्राणि। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। दिशः॑। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥१८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:18


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरी (पृथिवी) विस्तारयुक्त भूमि (च) और उसमें स्थित जो पदार्थ (मे) मेरी (इन्द्रः) बिजुलीरूप क्रिया (च) और बल देनेवाली व्यायाम आदि क्रिया (मे) मेरा (अन्तरिक्षम्) विनाशरहित आकाश (च) और आकाश में ठहरे हुए सब पदार्थ (मे) मेरा (इन्द्रः) समस्त ऐश्वर्य का आधार (च) और उस का करना (मे) मेरी (द्यौः) प्रकाश के काम करानेवाली विद्या (च) और उसके सिद्ध करानेवाले पदार्थ (मे) मेरा (इन्द्रः) सब पदार्थों को छिन्न-भिन्न करनेवाला सूर्य आदि (च) और छिन्न-भिन्न करने योग्य पदार्थ (मे) मेरी (समाः) वर्ष (च) और क्षण, पल, विपल, घटी, मुहूर्त, दिन आदि (मे) मेरा (इन्द्रः) समय के ज्ञान का निमित्त (च) और गणितविद्या (मे) मेरे (नक्षत्राणि) नक्षत्र अर्थात् जो कारण रूप से स्थिर रहते, किन्तु नष्ट नहीं होते, वे लोक (च) और उनके साथ सम्बन्ध रखनेवाले प्राणी आदि (मे) मेरी (इन्द्रः) लोक-लोकान्तरों में स्थित होनेवाली बिजुली (च) और बिजुली के संयोग करते हुए उन लोकों में रहनेवाले पदार्थ (मे) मेरी (दिशः) पूर्व आदि दिशा (च) और उनमें ठहरी हुई वस्तु तथा (मे) मेरा (इन्द्रः) दिशाओं के ज्ञान का देनेवाला (च) और ध्रुव का तारा ये सब पदार्थ (यज्ञेन) पृथिवी और समय के विशेष ज्ञान देनेवाले काम से (कल्पन्ताम्) समर्थ होवें ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य लोग पृथिवी आदि पदार्थों और उनमें ठहरी हुई बिजुली आदि को जब तक नहीं जानते, तब तक ऐश्वर्य को नहीं प्राप्त होते ॥१८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(पृथिवी) विस्तीर्णा भूमिः (च) अत्रस्थाः पदार्थाः (मे) (इन्द्रः) विद्युत्क्रिया (च) बलप्रदा (मे) (अन्तरिक्षम्) अक्षयमाकाशम् (च) अत्रस्थाः पदार्थाः (मे) (इन्द्रः) सर्वैश्वर्याधारः (च) एतत्प्रयोगः (मे) (द्यौः) प्रकाशकर्मा (च) एतत्साधकाः पदार्थाः (मे) (इन्द्रः) सकलपदार्थविच्छेत्ता (च) विच्छेद्याः पदार्थाः (मे) (समाः) संवत्सराः (च) क्षणादयः (मे) (इन्द्रः) कालज्ञाननिमित्तः (च) गणितम् (मे) (नक्षत्राणि) यानि कारणरूपेण न क्षीयन्ते तानि भुवनानि (च) एतत्सम्बन्धिनः (मे) (इन्द्रः) लोकलोकान्तरस्था विद्युत् (च) (मे) (दिशः) पूर्वाद्याः (च) एतत्स्थानि वस्तूनि (मे) (इन्द्रः) दिग्ज्ञापकः (च) ध्रुवतारा (मे) (यज्ञेन) पृथिवीकालविज्ञापकेन (कल्पन्ताम्) ॥१८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे पृथिवी च म इन्द्रश्च मेऽन्तरिक्षं च म इन्द्रश्च मे द्यौश्च म इन्द्रश्च मे समाश्च म इन्द्रश्च मे नक्षत्राणि च म इन्द्रश्च मे दिशश्च म इन्द्रश्च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्या पृथिव्यादिपदार्थांस्तत्रस्थां विद्युतं च यावन्न जानन्ति, तावदैश्वर्यं नह्याप्नुवन्ति ॥१८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जोपर्यंत माणसे पृथ्वी व त्यात असलेली विद्युत वगैरेना जाणत नाहीत तोपर्यंत ऐश्वर्य प्राप्त करू शकत नाहीत.